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Saturday, August 24, 2013

गजल


 पाउजु बाँधेर ....!

पाउजु बाँधेर 
 नाँच्छु तर छमछमी छैन
कस्तो परदेश हो यो कतै रमझमी छैन

अझै नग्न छे नारी अझै उस्तै रोएकी छे
अझै लाखौं छे सीता  द्रोपदीको कमि छैन

आगो देखिन्छ माथि धुँवा पनि बिछट्टै छ
ढुंगिन थाल्यो आँखा बर्सेर झर्न नमि छैन

आशा बिदेश गा छ रहर मर्छ कुमारी मै
मुर्दा जिलाइ फेरा बाँधिदिने लमि छैन  |

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